जमाने को लगी हवा जमाने की
फितरत बदल गई जमाने के साथ इस जमाने की
पहले थी कुछ और मगर अब है और बात जमाने की।
ना वो प्यार है ना मिठास है अब इस जमाने में
बस रह गई हैं सिर्फ और सिर्फ बातें उस जमाने की।
कुछ ऐसी चली हवा कि बदल गई सब रीतें
ना दुआ ना सलाम पैसे में बदली प्रीत जमाने की।
वक्त ने बदले हालात तो आई याद उस जमाने की
कि लग गई हो जैसे नजर उस जमाने को इस जमाने की।
(श्री पीयूष शर्मा पारस दैनिक भास्कर चूरू में बतौर रिपोर्टर कार्यरत हैं।)
रविवार, 24 जनवरी 2010
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पीयूष जी, इस खूबसूरत कविता के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंनिरंतरता बनाए रखें....
पीयूष रचनात्मक गुणवता के साथ आगे बढ़े, मेरी शुभकामनाएं।
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