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शनिवार, 21 नवंबर 2009

हसरत जयपुरी की एक ग़ज़ल


इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये

छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये

ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये

ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये

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