सोमवार, 23 नवंबर 2009
तसलीमा नसरीन की कविताएँ
पिता, पति, पुत्र
अगर तुम्हारा जन्म नारी के रूप मे हुआ है तो
बचपन में तुम पर
शासन करेंगे पिता
अगर तुम अपना बचपन बिता चुकी हो
नारी के रूप में
तो जवानी में तुम पर
राज करेगा पति
अगर जवानी की दहलीज़
पार कर चुकी होगी
तो बुढ़ापे में
रहोगी पुत्र के अधीन
जीवन-भर तुम पर
राज कर रहे हैं ये पुरुष
अब तुम बनो मनुष्य
क्योंकि वह किसी की नहीं मानता अधीनता -
वह अपने जन्म से ही
करता है अर्जित स्वाधीनता
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तोप दागना
मेरे घर के सामने स्पेशल ब्रांच के लोग
चौबीसों घंटे खड़े रहते हैं
कौन आता है कौन जाता है
कब निकलती हूँ, कब वापस आती हूँ
सब कापी में लिखकर रखते हैं
किसके साथ दोस्ती है
किसकी कमर से लिपटकर हँसती हूँ
किसके साथ फुसफुसाकर बातें करती हूँ ...सब कुछ
लेकिन एक चीज़ जिस वे दर्ज़ नहीं कर पाते
वह है - मेरे दिमाग़ में कौन-सी भावनाएँ
उमड़-घुमड़ रही है
मैं अपनी चेतना मे क्या कुछ सँजो रही हूँ
सरकार के पास तोप और कमान हैं
और मुझ जैसी मामूली मच्छर के पास है डंक
शनिवार, 21 नवंबर 2009
हसरत जयपुरी की एक ग़ज़ल
इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
शनिवार, 14 नवंबर 2009
कुमार अजय की गजलें
एक लब्ज न बोलूंगा...
तिरे पहलू में बैठकर जी भर के रो लूंगा
नाराजगी भी निभाऊंगा, एक लब्ज न बोलूंगा।
तुम्हारी मुहब्बत में दर्द के दरिया से कभी
निजात हो भी गई तो फिर से दिल डुबो लूंगा।
तुझे मुझसे डर है, मुझे तुम्हारी फिकर है
आखिर मैं क्यूं जहर तेरी जिंदगी में घोलूंगा।
इस घने जंगल में आदमी से डरता हूं मैं
कोई जानवर मिले तो तय है साथ हो लूंगा।
मेरी जेब में हादसों के हसीन मोती भरे हैं
वक्त मिला तो उन्हें आंसू के धागे में पिरो लूंगा।
बाहर दम घुटे है, एक कब्र बख्श दे मौला
तेरे बंदों से नजर बचाके चैन से तो सो लूंगा।
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राहतों का मौसम है...
एक मुट्ठी धूप की और एक मुट्ठी छांव की
राहतों का मौसम है ये मिट्टी मेरे गांव की।
जूते को सिर पर रखो तो मरजी आपकी
वरना तो ये जरूरत है महज पांव की।
कोयल पर जान देना तो रिवाज है यहां का
कभी कशिश तौल तू किसी कांव-कांव की।
बांहें फैला बेशक, आकाश को थाम भी ले
पर देख खिसक न जाए जमीन पांव की।
जिंदगी की बिसात पर नये मोहरे खरीद
अब तो दुकानें खुल गईं हर पेंच-दांव की।
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खामोशी के मतलब हजार हैं...
चोट खाईये और मुस्काराईये
दर्द की हदों को भी आजमाईये।
दोस्तों के खंजर सह लीजिये
दुश्मनों से दोस्ती मगर निभाईये।
आपकी खामोशी के मतलब हजार हैं
लब खोलिये, ना मुझको उलझााईये।
बाद सदियों के चाहा है किसी को
हमारी ये जुर्रत ना यूं ठुकराईये।
रिश्तों में दलाली मुनासिब तो नहीं
नजदीक आईये, फासले मिटाईये।
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खूबसूरत की गलियों में...
तिरी दुनिया से रूखसत हुए जा रहे हैं।
जफा ही झेलने की आदत है मिरे दिल को
आप फालतू ही वफाएं किये जा रहे हैं।
हसीं खंजर से मरना भी कितना हसीं है
खूबसूरत की गलियों में आ जा रहे हैं।
कभी जश्ने-वफा में होश खोया किया
गमे-बेवफाई में आज पिये जा रहे हैं।
एक वक्त है जो जख्म भरने चला है
एक हम हैं जो उन्हें हरा किये जा रहे हैं।
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एक नाजनीं मेरे तसव्वुरात में...
ना जाने कौन सी बात का वहम धरती है
कि रोशनी मेरे दरीचे में आने से डरती है।
सबको पीछे छोड़ आने के बाद आजकल
जिंदगी खुद को तनहा महसूस करती है।
जिक्रे-मुहब्बत से ही आज परहेज है मगर
कुछ पुरानी गलतियां जरूर अखरती हैं।
तरक्कीपसंद शहर को अब याद नहीं शायद
एक गली तेरे घर के पीछे से भी गुजरती है।
सबब-ए-हादिसा-ए-कत्ले-खुद पर सोचता हूं तो
एक नाजनीं मेरे तसव्वुरात में उभरती है।
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